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तराई का लाल सिमरनजीत बना भारतीय हॉकी टीम की शान

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भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने जिस तरह से ओलंपिक में कम बैक किया और प्रशंसकों के दिलो दिमाग पर छा गई, ऐसा दूसरा उदाहरण शायद ही देखने को मिले। टीम इंडिया की इस शानदार यात्रा में तराई का एक लाल महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भारतीय हॉकी का ये चमकता सितारा है पीलीभीत का सिमरनजीत सिंह।

 

पीलीभीत स्थित मझारा फार्म पर लकड़ी के डंडे से हॉकी खेलना शुरू किया था सिमरनजीत ने। पास के कस्बे मझोला में ही शुरुआती पढ़ाई पूरी की और फिर पंजाब में रहने वाले उसके ताऊ रक्षपाल सिंह सिमरन को अपने साथ ले गए। उसका दाखिला गुरदासपुर की चीमा हॉकी अकादमी में करा दिया। यहीं से हॉकी के इस सितारे का चमकना शुरू हुआ। 2016 में लखनऊ में हुए जूनियर वर्ल्ड कप हॉकी का गोल्ड जीतने वाली टीम का हिस्सा रहा तराई का यह लाल। फाइनल में उसके एकमात्र गोल से भारत के गोल्ड मेडल मिला था।

 

टोक्यो ओलंपिक में भारत ने स्पेन को जब 3-0 से हराया तो सारी दुनिया की निगाहें सिममरनजीत पर टिक गईं। भारत की ओर से पहला गोल पीलीभीत के इसी लड़के ने किया था। यह उसका पहला ओलंपिक गेम था जिसमें उसका प्रदर्शन देखने लायक रहा। हॉकी के बड़े नामों ने सिमरनजीत के प्रदर्शन को सराहा और उसके स्टाइल को सबसे अलग बताया।  

 

पिता का सपना था- बेटा भारत को गोल्ड दिलाए

मझोला के मझारा फार्म में रहने वाले सिमरनजीत के पिता का सपना था कि उनका बेटा भारतीय टीम को ओलंपिक का गोल्ड दिलाए। वह कहते हैं कि उनके भाई रक्षपाल सिंह तो स्टेट लेवल तक ही खेल सके थे। लेकिन, उन्हीं के प्रयास से बेटे ने ओलंपिक में गोल दाग दिया। पिता का मानना है कि उनके बेटे के गोल से भारत को एक दिन ओलंपिक का गोल्ड मिलेगा। बता दें कि 2016 में सिमरनजीत के गोल्ड से भारत को स्वर्ण पदक मिला था।

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