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इतने दाग अच्छे नहीं राजनीतिक प्रतिद्वंद्व जातीय लड़ाई में पहले कभी नहीं बदला तराई में

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तराई रीजन की मीठी सियासत में न जाने किसने इतना वैमनस्य का जहर घोल दिया है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान महज नारेबाजी तक दिखने वाली लड़ाई अब जिला पंचायत और ब्लॉक प्रमुख चुनाव में एक महिला प्रत्याशी के साथ बदसुलूकी तक पहुंच गई है। पब्लिक का दिल जीतकर निर्विरोध विजय पाने की जगह बम और तमंचों के दम पर किसी दूसरे को पर्चा न दाखिल करने देने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। तराई की सियासत जिस ओर जा रही है, उस ओर सिर्फ दाग हैं। लेकिन, सियासत में इतने दाग होना भी अच्छी बात नहीं है। 

लखीमपुर, सीतापुर, शाहजहांपुर, पीलीभीत और बहराइच का ये तराई इलाका राजनीतिक शुचिता के लिए जाना जाता है। यहां देश और प्रदेश की सियासत में बड़ा दखल रखने वाले नेता हुए हैं। भारतीय जनता पार्टी के बड़े और आदर्श नेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी लखीमपुर खीरी में प्रचारक रहे। उन्होंने आगे चलकर एक विचार को जन्म दिया और एकात्म मानववाद के उसी विचार पर भाजपा बढ़ी। कांग्रेस की बड़ी नेता डॉक्टर राजेंद्र कुमारी वाजपाई ने सीतापुर से कई बार लोकसभा चुनाव जीता और केंद्र में मंत्री रहीं। शाहजहांपुर से बाबा साहेब जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के राजनीतिक सलाहकार रहे। बालगोविंद वर्मा और बाद में रामलाल राही केंद्र में मंत्री रहे। राजेंद्र कुमार गुप्त, डॉक्टर अम्मार रिजवी, जफर अली नकवी, राजा सरस्वती प्रताप सिंह और रामकुमार वर्मा सरीखे नेताओं ने प्रदेश की सियासत में जबरदस्त दखल रखा और मंत्री भी रहे। लेकिन, इन नेताओं में मुकाबला विचारधारा का था, विचारों का था और सियासी था। इन नेताओं ने न आपराधिक ग्रुप खड़े किये, न खुद खतरा महसूस किया और न सुरक्षा की मांग की। उस पीढ़ी के नेता सीधे जनता के बीच जाते थे। जनता उन्हें जिताती भी थी और हराती भी थी। लेकिन, उस पीढ़ी के नेताओं ने गैंग खड़े नहीं किए और न अपराधियों को पाला पोसा। तभी तो अलग अलग पार्टी के नेता एक ही कार्यक्रम में एक साथ दिख जाते थे। 

लेकिन, पिछले दो चार साल में लगता है कि तराई की सियासत को किसी की नजर लग गई है। लखीमपुर खीरी में करीब छह माह पहले एक कॉपरेटिव बैंक के चेयरमैन के चुनाव में एक ही पार्टी के दो ग्रुप में जरदस्त हिंसा हुई। गोली चलने के आरोप लगे। इसके बाद जिला पंचायत चुनाव में तो सदस्यों को वोटिंग से पहले दूसरे प्रदेश में रखा गया। खूब आरोप लगे और वोटिंग के दिन खूब हंगामा हुआ। 

इसके बाद तो जैसे चुनावी सियासत मतलब वर्चस्व की जंग हो गई। ब्लॉक प्रमुख चुनाव में हुई हिंसा ने तराई को नेशनल फलक पर दागदार बना दिया। पसगवां ब्लॉक  में एक महिला उम्मीदवार और महिला प्रस्तावक के साथ जो बदसुलूकी की गई, वो महिला उत्पीड़न की नजीर बन गई। प्रदेश की योगी सरकार ने खुद मामले को दाग मानते हुए पूरे थाने और एक पुलिस अधिकारी पर एक्शन लिया। सीतापुर जिले में तो एक प्रत्याशी को पर्चा भरने से रोकने के लिए दूसरे ग्रुप ने गोलियां और बम तक दागे। यहां के वायरल वीडियो में पुलिस तक भागती दिखाई दे रही है। तराई के हर जिले में कुछ न कुछ हिंसा की वारदातें हुईं। 

दिल्ली विश्वविद्यालय में अतिथि प्रोफेसर और तराई के रहने वाले एक शख्स कहते हैं कि तराई की सियासत में पहले मनी पावर आया, फिर मसल पावर। कुछ काम जाति की राजनीति करने वाले नेताओं ने किया। देखते ही देखते माहौल दूषित होता गया। उनका मानना है की जंगल, नदी, बाघ और प्रदूषण जैसी बीमारियों से अछूते रहने वाले तराई के दामन पर ये सियासी हिंसा के दाग अच्छे नहीं हैं। प्रबुद्धजन इस पर सोचें और जनता को जागरूक करें जिससे तराई की सियासत अपराधियों और दबंगों के हाथ की कठपुतली बनने से बच जाए।

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