गुज़ारिश करने के बाद 20-20 दिन में मिल पाता है खाना बनाने का ईंधन
आज भी सबसे आख़िर में खाती हैं गावं की महिलाएं
0.22 फ़ीसदी ही पक्का जानती हैं कि सबके खाने बाद उन्हें मिलेगा भरपेट भोजन
अप्रैल 2021 में एक्टर से अभिनेता बने कमल हासन की राजनीतिक पार्टी वादा करती है कि तमिलनाडु विधानसभा चुनाव जीतने पर घरेलू महिलाओं को भी सैलरी दी जाएगी। उनके इस वादे का शशि थरूर स्वागत करते हैं। वहीं अभिनेत्री कंगना रनौत विरोध दर्ज करती हैं कि कमल हासन का वादा घर के मालिक को कर्मचारी बनाने जैसा है और ये वादा ईश्वर को उसकी कृति के लिए कीमत अदा करने जैसा भी है। मुद्दा चुनावी था, चेहरे चर्चित थे, बात आई और चली गई। मगर इस बात से परे मोर्सल रिसर्च एंड डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड की डेटा एनालिस्ट मनीषा अवस्थी और को ऑथर भारतेन्दु त्रिवेदी एक ऐसे ही शोध के तहत ज़मीनी हकीकत पर काम कर रहे थे। पेश है उसका कुछ अंश –
मोर्सल रिसर्च एंड डेवलपमेंट के इस शोध का उद्देश्य उन कारणों का पता लगाना है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से खाना पकाने के ईंधन के लिए महिलाओं के संघर्ष से जुड़े हैं। क्यूंकि भारत की बड़ी आबादी गांव में निवास करती है। यहां शिक्षा की कमी, जेंडर भेदभाव, बाल विवाह, हाइजीन की कमी, डोमेस्टिक वॉयलेंस और दहेज जैसी कई समस्याओं के अलावा खाना पकाने के ईंधन की व्यवस्था का संघर्ष भी एक बड़ी समस्या हैं। रोज़मर्रा की ज़िंदगी में खाना पकाने के ईंधन की उपलब्धता, प्रबंधन और उपयोग ने इन महिलाओं के पैरों में बेड़ियां डाल दी हैं। ये शोध इन बेड़ियों को काटने का हल भी बताता है। आइये इसे सिलसिलेवार समझने की कोशिश करते हैं –
कब कहां और किसे शामिल किया गया इस रिसर्च में –
ये रिसर्च भारत के झारखंड राज्य में जुलाई-अगस्त 2019 में की गई थी। शोध में ऐसी 480 ग्रामीण महिलाओं के साथ के अनुभव शामिल किये जो झारखण्ड के ग्रामीण एरिया की रहने वाली थीं। जिनकी ज़िम्मेदारी अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ खाना तैयार करना है। शोध के बाद सामने आने वाले परिणाम और निष्कर्ष इस तरह हैं –
अध्ययन के परिणामों को तीन मुख्य भागों में बाटा गया है-
वित्तीय स्वतंत्रता:
- रसोई की मुखिया होने के नाते किचन की पूरी जिम्मेदार महिलाओं की होती है। अध्ययन से पता चलता है कि केवल खाना पकाने और उसकी तैयारी के लिए महिला को दिन में औसतन 5 घंटे रसोई में व्यतीत करने पड़ते है। भारत में किसी भी संस्थान के मुखिया का एवरेज एनुअल इनकम 21 लाख रुपये है। वितरण के आधार पर उन्हें सालाना 11 लाख वेतन मिलना चाहिए, लेकिन काम भुगतान तो दूर ऐसा कोई आकलन तक नहीं होता। महिलाओं के कामो की तुलना पैसे से न हुए उसे परिवार के लिए बहुत महत्वपूर्ण बताया जाता है साथ ही इस काम को बहुत प्रशंसा और सम्मान से जोड़ा जाता है।
- अध्ययन से पता चलता है कि केवल 57% महिलाएं ही ईंधन पूरी तरह से ख़त्म होने से पहले नए ईंधन को घर लाने का निर्णय लेती हैं। सभी महिलाएं घर पर ईंधन लाने का निर्णय नहीं ले पाती हैं क्योंकि उनके हाथ में वित्तीय स्वतंत्रता नहीं है।
- केवल 15% महिलाएं ही घर में खाना पकाने का ईंधन लाने के लिए अपने पैसे से प्रबंधन कर रही हैं। बाकी ईंधन लाने के लिए पुरुष साथी पर निर्भर हैं क्योंकि उनके पास किसी भी प्रकार का वित्तीय स्रोत नहीं है।
- जबकि खाना पकाने का ईंधन घरेलू आवश्यक जरूरतों की श्रेणी में आता है, लेकिन वित्तीय समस्याओं के कारण महिलाओं को इसके लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।
पोषण और स्वास्थ्य कारक:
(घर में खाने का तरीका)
- अध्ययन से पता चलता है कि लगभग 90% महिलाएं घर में सभी के भोजन करने के बाद भोजन करती हैं।
- जबकि उनके लिए भोजन की उपलब्धता के बारे में पूछे जाने पर केवल 0.22% महिलाएं ही बता पाई की सबके खाना खाने बाद ये पक्का होता है की उनके ले पर्याप्त खाना बच पाता है।
(सदस्यों के लिए भोजन की उपलब्धता)
- खाने की इन आदतों के चलते उन्हें बैलेंस डाइट नहीं मिल पाती है। ऐसे में पोषण की कमी का उनकी हेल्थ पर असर पड़ता है।
- ज्यादातर महिलाएं परिवार के अन्य सदस्यों को प्राथमिकता में रखती हैं इससे महिलाओं को कई शारीरिक और मानसिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अन्य मेंबर्स को प्राथमिकता देने के कारण खुद को इग्नोर करना पड़ता है और ऐसे में उन्हें कई शारीरिक व मानसिक बीमारियां घेर लेती हैं। जबकि ऐसी सामाजिक धारणा के विपरीत महिलाएं भी सामान व्यवहार की पात्र हैं।
- उचित आहार और पोषण के प्रति महिलाओ में जागरुकता बढ़ाना भी ज़रूरी है ताकि वे अपने नियमित पोषण से समझौता न करें।
आजीविका और जीवन शैली:
- रिसर्च से पता चलता है कि हर महिला को एक बार पाती से खाना पकाने के ईंधन के लिए पैसे मांगने के बाद 20 दिन का इंतज़ार करना पड़ता है, जब ईंधन घर पहुँचता है। खाना पकाने का ईंधन आवश्यक खर्च में आता है जो महिलाओं को समय से न मिलने पर उन्हें अधिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि खाना पकाना तो उन्हें रोज़ पकाना है।
- 14% महिलाओं को खाना पकाने के ईंधन के प्रबंधन के लिए अपने पति से बहस करनी पड़ती है जिसका असर न केवल उनके रिश्ते पर पड़ता है बल्कि महिलाओं को अपनी उन बुनियादी ज़रूरतों के लिए संघर्ष करना पड़ता है जो परिवार के सभी सदस्यों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- जिन घरों में एलपीजी गैस का प्रयोग नहीं होता वहां की महिलाओं को और भी अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ईंधन के लिए लकड़ी और पत्ते को इकट्ठा करने की ज़िम्मेदारी घर की महिला की होती है | ऐसे में ये महिलाएं कई स्वास्थ्य समस्याएं जैसे जननांग, रीढ़ की हड्डी और मांसपेशियों के दर्द (musculoskeletal pain) की गिरफ़्त में आ जाती हैं।
(खाना पकाने का ईंधन किसे मिलता है)
सुझाव
- आज भी ऐसे बहुत सरे घर हैं जहां एलपीजी गैस नहीं है या है तो इसे खाना पकाने के ईंधन के मुख्य स्रोत के रूप में उपयोग नहीं करते हैं। ऐसे में सरकार को कुछ इस तरह के प्रोग्राम पर ज़ोर देना चाहिए जो इन्हे एलपीजी गैस के प्रयोग के लिए प्रेरित करें। उज्ज्वला योजना इस तरफ़ एक बड़ी पहल थी लेकिन जिन घरों में उज्ज्वला योजना में कनेक्शन लिया था, वहाँ भी सिलेंडर रिफ़िल करने के लिए वैसी ही समस्यों का सामना करना पड़ता है।
- एलपीजी गैस का इस्तेमाल नहीं होने की दशा में उस घर की महिलाओं की जिम्मेदारी होती है कि प्राकृतिक ईंधन इकट्ठा करें।
- महिलाओं की वित्तीय स्वतंत्रता वास्तव में महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सीधे उनके निर्णय लेने से संबंधित है। इसलिए सरकार को महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की तरफ़ भी कदम उठाना होगा।
- समाज में व्यवहार परिवर्तन वास्तव में महत्वपूर्ण है जिससे न केवल महिलाएं बल्कि हर कोई महिलाओं के मूल अधिकार को समझे और उनके साथ समान व्यवहार करे।
- उचित आहार और पोषण के प्रति महिलाओं को जागरुक करने की ज़रूरत है ताकि वे अपने खाने की आदतों से समझौता न करें।
(सोर्स : www.morselindia.in/research)