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ये हाथी कतई नहीं हैं किसानों के साथी

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यूपी के तराई रीजन में खेतों को रौंद रहा नेपाल से आया हाथियों का झुंड

हमारे यहां कहावत कही जाती है, हाथी मेरे साथी। लेकिन, इन दिनों यूपी के तराई रीजन में विचरण कर रहा नेपाल से आया जंगली हाथियों का झुंड किसानों का साथी तो एकदम दिखाई नहीं पड़ रहा। लखीमपुर, पीलीभीत और बहराइच के जंगलों और उसके आसपास के खेतों में भारी तबाही मचा रहे हैं नेपाल से आए हाथी। ये हाथी इतने चतुर हैं कि एक दिन में 20 से 50 किलोमीटर तक की यात्रा करके रोजाना लाखों की वन संपदा और खेती-बाड़ी नष्ट कर रहे हैं।

नेपाल के हाथी भारत में हर साल क्यों आते हैं और इतने हिंसात्मक क्यों होते हैं, ये सवाल भी इन दिनों पशु प्रेमियों और लोगों में घूम रहा है। दरअसल, नेपाल के जिस हिस्से से हाथियों का ये झुंड तराई में आता है, वहां के जंगल और दुधवा रेंज के जंगल लगभग एक जैसे हैं। हरियाली और पानी की उपलब्धता समान होने से उनका हर साल रास्ता भटक कर इस ओर आना लगा रहता है। लेकिन, इस साल जो झुंड आया है, उसमें युवा नरों की संख्या ज्यादा है। वे ज्यादा उत्पाती हैं और भोजन से ज्यादा फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। सबसे ज्यादा नुकसान गन्ना किसानों को हो रहा है। पिछले कई वर्षों में देखा गया है कि 20 से 25 हाथियों का झुंड नेपाल से भारत में प्रवेश करता रहा है। अधिकांशत: हाथियों का झुंड दोनों देशों के बफर जोन तक सीमित रहता था और कुछ दिनों में ही वापस अपने हैबिटेट में वापस चला जाता था। इस बार झुंड में 40 से 60 तक हाथी होने का अंदेशा और वे तराई के अलग-अलग रीजन में बर्बादी मचाए हुए हैं।    

तो इसलिए अपने घर नहीं लौट रहे मेहमान हाथी

हर साल नेपाल के हाथी भारत में क्यों आते हैं, इसकी कहानी भी रोचक है। दरअसल, जुलाई आते-आते नेपाल की नदियों में उफान आ जाता है। इससे पानी जंगल में फैलने लगता है और हाथियों को एक साथ झुंड या ग्रुप में रहने के लिए जगह की कमी पड़ने लगती है। इसलिए वे हर साल दुधवा जंगल की ओर रुख करते हैं। नदियों में पानी कम होने के बाद हाथियों का झुंड वापस चला जाता है। इस साल जो झुंड यूपी के तराई रीजन में उत्पात मचा रहा है, वह नेपाल वापस जाने का रास्ता नहीं पा रहा है। नेपाल और सीमा से सटी भारतीय जंगल की नदियों में इस बार पानी बहुत ज्यादा है और बाढ़ के हालात कम नहीं हो रहे हैं। इस वजह से मेहमान हाथी अपने मूल निवास में नहीं जा पा रहे हैं। इसी वजह से इन हाथियों में हिंसा और फसलों को बर्बाद करने की पृवृत्ति भी ज्यादा है।

कई पीढ़ियों से आना-जाना करते हैं जंगली हाथी

कई बार आपके जेहन में सवाल उठता होगा कि नेपाल से आने वाले जंगली हाथी हमेशा लखीमपुर-पीलीभीत और बहराइच के जंगलों में क्यों आते हैं। तो इसका लॉजिक समझने के लिए एक्सपर्ट के पास जाना होगा। वन्यजीवों पर अध्ययन करने वाले भारतीय वन सेवा के पूर्व अधिकारी बताते हैं कि हाथी हमेशा अपने पहले वाली पीढ़ी के बनाये रास्ते पर ही चलते हैं। जरा सा खतरा दिखने पर वे उसी रास्ते से वापस लौट जाते हैं। इस तरह हाथियों की कई पीढ़ियां एक ही रास्ते पर आती जाती हैं। नेपाल के शुक्लाफांटा, वार्दिया पार्क और चितवन नेशनल पार्क से हाथी भारत के तराई रीजन में आते हैं। इनके आने का रूट ज्यादातर शुक्लाफांटा, घनाराघाट से होते हुए यूपी के ट्रांसशारदा क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। यहां पहुंचकर नेपाली हाथी किशनपुर सेंक्चुरी में आकर ठहरते हैं। एक और कॉरिडोर है जो उन्हें कतर्नियाघाट के जंगलों में पहुंचा देता है। इन्हीं कॉरिडोर से उन्हें वापस नेपाल भेजने की कोशिश वन विभाग की टीम करती है।   

नेपाल से भारत पहुंचा हाथियों का झुंड अजीब हरकते कर रहा है। जटपुरा के जंगलों से निकलकर सहजनियां पहुंचे तो रास्ते में पड़ने वाले किसानों का भारी नुकसान कर गए। जंगल से गुजर रहे रेलट्रैक को पार करने के बाद कम से कम छह गांवों में खड़ी गन्ने की फसल पूरी तरह रौंद डाली है इन हाथियों ने। गांव वालों को 12-15 हाथियों का झुंड दिखाई दिया जो गन्ना या जंगल की हरी पत्तियों को खाने से ज्यादा खेतों में रुककर उसे रौंदते रहे। नेपाल से आने वाले हाथियों और जंगली हाथियों के स्वभाव में साल दर साल लगातार गर्मी आती जा रही है। पहले जहां नेपाल से आने वाले हाथियों का झुंड खाने की तलाश में खेतों में आ जाता था, वहीं इस बार ये हाथी खाने से ज्यादा फसल को बर्बाद कर रहे हैं। एक और बदलाव इन जंगली हाथियों के स्वभाव में हुआ है। पहले ये हाथी 10-15 दिन की मेहमाननवाजी के बाद नेपाल वापस चले जाते थे। इस बार ये भारत में ही एक सेंक्चुयरी से दूसरी में और एक जंगल से दूसरे में ही लंबे समय से विचरण कर रहे हैं।

रोज ठिकाना बदलने से खदेड़ना मुश्किल

नेपाली हाथियों की निगरानी के लिए वन विभाग की टीमें लगातार काम्बिंग कर रही हैं। लेकिन, हाथियों का झुंड इतनी तेजी से स्थान बदल रहा है कि फसलों का नुकसान हो जाने के बाद ही उनकी सही लोकेशन पता चलती है। इनके रोज ठिकाना बदलने से इनको नेपाल की ओर खदेड़ना भी मुश्किल हो रहा है।  

ऊपर मत्थे के लिए

लगभग हर साल नेपाल से दुधवा आने वाले कुछ जंगली हाथियों ने सभ्य बनकर भारत में ही रहना बेहतर समझा है। वन विभाग के आकड़ों के मुताबिक दुधवा और कतर्निया घाट के जंगलों में करीब 70 से 80 तक ऐसे हाथी हैं जो पिछले वर्षों में नेपाल से आकर यहीं बस गये हैं।  

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