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तालिबान के तरफदार

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अफगानिस्तान – भारत की दोस्ती से तिलमिलाए इमरान खान ने कट्टरपंथियों से अपनी नजदीकी खुद उजागर कर दी 

अफगानिस्तान में मजलूमों पर जुल्म ढा रहे कट्टरपंथी संगठन तालिबान का असली तऱफदार कौन है, ये अब दुनिया से छुपा नहीं रह गया है। अफगानिस्तान से भारत की नजदीकी और वहां पुनर्निर्माण के लिए मोदी सरकार की दरियादिली को देखकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान तिलमिला से गए हैं। उन्होंने जब काबुल से बुलाए गए पत्रकारों के सामने ये दावा किया कि वह भारत को अफगान शांति वार्ता का हिस्सा नहीं बनने देंगे, तब एक तरह से उन्होंने खुद को तालिबान का नियंत्रक यानी आका मान लिया। दरअसल अफगान पीस प्रोसेस का अहम किरदार तालिबान है और उसकी तरफदारी इतने भरोसे से उसका आका ही कर सकता है।

तालिबान और पाकिस्तान सरकार के रिश्तों को समझने के लिए हाल की कुछ घटनाओं पर गौर करिए। पाकिस्तान का सबसे घनिष्ट साथी और उसको लगातार कर्ज देने वाला हमदर्द देश चीन है। वहां हाल ही में हुई एक आतंकी वारदात के बाद से चीन इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ खड़ा हो गया। चीन के अफसरों को शक था कि उनके देश में धमाका करने वालों को अफगानिस्तान के तालिबान ने अंजाम दिया है। अमेरिका के निशाने पर आ चुके तालिबान को जैसे ही चीन से खतरा दिखा, पाकिस्तान में बैठे उनके आका सक्रिय हो गए। तालिबान की टॉप लीडरशिप को आनन फानन चीन के विदेश मंत्री से मिलने उन्हीं के देश भेजा गया। मुलाकात में तालिबान ने तमाम सफाई दीं कि चीन में धमाके से उनका कोई लेना-देना नहीं है। इसके बावजूद चीन के विदेश मंत्रालय ने तालिबान को कड़ी नसीहत दे डाली।

एक और उदाहरण से समझिए कि तालिबान के असल आका इमरान खान क्यों माने जा रहे हैं। हाल ही में काबुल से आए या कहें बुलाए गए पत्रकारों के सामने जिस तरह इमरान खान तालिबान की तरफदारी करते नजर आए, उसको सुनकर तो पत्रकार भी सन्न रह गए। मसलन एक सवाल के जवाब में पाक पीएम ने कहा कि अमेरिका को हमेशा ख्याल रखना चाहिए कि तालिबान को बातचीत के लिए हमने राजी किया है। इसका सीधा मतलब है कि तालिबान की दिखावटी लीडरशिप दूसरी है और असली आका पाकिस्तान में बैठा है।

पाक सेना और सरकार (जो दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं) दोनों तालिबान पर किस तरह और कितना नियंत्रण रखते हैं, इसका तीसरा उदाहरण देखिए। इमरान खान हर मंच पर खुलेआम कहते हैं कि अफगान शांति वार्ता में वह भारत को तब तक भागीदार नहीं बनने देंगे जब तक मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के अपने फैसले को वापस नहीं ले लेगी। मतलब समझिए। बातचीत होनी है अफगान सरकार औऱ तालिबान में। मध्यस्थ है अमेरिका। लेकिन, चौधरी बन रहे हैं इमरान खान। इसका मतलब है तालिबान के आका हैं खुद इमरान खान। इसीलिए वह अफगान शांति वार्ता भी उन्हीं की शर्तों पर आगे बढ़ेगी।

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