रायबरेली। पुणे में फैले गिलियन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के चपेट में आए आठ साल के बच्चे को जीवनदान मिल गया। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में पांच माह तक इलाज के बाद बीमारी पर काबू पाया गया। स्वस्थ होने के बाद बच्चा अब अपने घर पहुंच गया है। बच्चे के इलाज में मुख्यमंत्री राहत कोष से धन की व्यवस्था की गई थी।
29 सितंबर 2024 को मुंशीगंज निवासी भव्यांश (8) को गंभीर हालत में एम्स लाया गया था। बच्चे को दोनों निचले अंग काम नहीं कर रहे थे। कुछ ही घंटों में बच्चे को पूर्ण पक्षाघात हो गया। सांस लेने में दिक्कत थी। उसे पीआईसीयू में स्थानांतरित कर वेंटिलेटर पर रखा गया था। जांच में बच्चे में जीबीएस बीमारी की पुष्टि हुई।
एम्स में इस बीमारी का सबसे गंभीर मरीज का इलाज बाल रोग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. नमिता मिश्रा ने शुरू किया। बच्चे को दो माह तक लगातार वेंटिलेटर पर रखा गया। ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के सहयोग से रक्त से हानिकारक एंटीबॉडी को हटाने के लिए प्लाज्माफेरेसिस किया गया। ईएनटी विभाग ने ट्रेकियोस्टोमी की, जिससे बच्चे को सांस लेने में मदद मिली। धीरे-धीरे बच्चे की ताकत वापस आ गई और स्वस्थ होने के बाद छुट्टी दे दी गई।