
पुस्तक का नाम – बिऑन्ड द कोविड शैडो : मैपिंग इंडियाज़ इकॉनमी रिसर्जेंस
लेखक और संपादक – संजय बारू
प्रकाशक – रूपा पब्लिकेशन इंडिया
वर्ष : 2021
क़ीमत – 595.00/-
दूसरे विश्व युद्ध के बाद से कभी भी अर्थव्यवस्था के जानकारों ने आर्थिक योजनाओं को लेकर इस तरह कीअनिश्चित्ता का सामना नहीं किया होगा। इकनोमिक पालिसी मेकर के सामने ये वक़्त ऐसे होम वर्क का है जब उन्हें न सिर्फ आर्थिक तरक्की की रफ़्तार को वापस लाना है बल्कि गवर्नेंस और प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए कोलैप्स हुई इकॉनमी की मरम्मत भी करनी है।
संजय बारू ने इस संपादित खंड में अनिश्चितता को COVID-19 के कारण होने वाली प्रमुख समस्या माना है और अर्थव्यस्था पर इसके प्रभाव को उजागर किया है। महामारी से पहले ही भारतीय अर्थ अर्थव्यवस्था विकास की मंदी जैसी चुनौती को झेल रही थी। जब महामारी आई तो दुनियाभर ने इसका सामना करने के लिए प्रतिबंध लगाए जबकि मार्च 2020 में भारत में रातभर में तालाबंदी का फरमान जारी कर दिया गया। जिसका नतीजा आर्थिक गतिविधियों का भारी संकुचन और वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारत की विकास दर का 10 प्रतिशत तक गिरंने के संकेत हैं।
महामारी ने अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव डाले हैं और विकास की गति को कैसे बहाल किया जा सकता है? संजय बारू सी. रंगराजन, सुब्रमण्यम स्वामी, विवेक देबरॉय, मेघनाद देसाई, अमिताभ कांत, इंदिरा राजारामन, रमा बीजापुरकर, ओंकार स्वामी और कई अन्य प्रतिष्ठित जानकारों के लेख इन सवालों के जवाब तलाशते हैं । महामारी के बाद एक आत्मानिर्भर भारत के लिए आवश्यक व्यापक आर्थिक नीति तथा आर्थिक और सामाजिक प्रभाव और पर भी इन लोगों की प्रतिक्रिया काफी महत्वपूर्ण हैं।
इस किताब को छह खंडों में विभाजित किया गया है इसके पहले अध्याय में सात लेख हैं जिनका शीर्षक है ‘Managing Growth and Uncertainty’ (प्रबंध विकास और अनिश्चितता), लेखों का ये सेट माइक्रोइकनोमिक को बड़े पैमाने पर समेटता है। दूसरे खंड में तीन लेख हैं और इसका शीर्षक – ‘The Fiscal Dimension’ (राजकोषीय आयाम) है। इस खंड में संघवाद के मुद्दे पर फोकस किया गया है। ‘पैनडेमिक एंड पीपुल’ शीर्षक से तीसरे खंड में 2 लेख हैं। ये काफी हद तक पांचवें खंड ‘एम्प्लॉयमेंट एंड माइग्रेशन’ के जैसा है। जबकि चौथा खंड दो लेखों के साथ ‘ट्रेड पॉलिसी’ शीर्षक से है। ‘न्यू इकॉनमी’ नाम वाले छठे और अंतिम खंड में महामारी के बाद अर्थव्यस्था के बदलाव का ज़िक्र है।
पुस्तक के इस संपादित खंड के प्रस्तुतकर्ता संजय बारू राजनीतिक टिप्पणीकार और नीति विश्लेषक हैं। संजय बारू फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के महासचिव के पद से 2018 में इस्तीफ़ा दे चुके हैं। इससे पहले ये इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज में भू-अर्थशास्त्र और रणनीति के निदेशक थे।