स्माइल मैन की चिंता- कवि सम्मेलन में श्रोता नहीं होंगे तो जज्बात और अहसास का तंतु कहां से आएगा
हास्य, व्यंग्य और कविता की दुनिया में एक स्थापित नाम हैं सर्वेश अस्थाना। साहित्य की दुनिया हो या स्तंभ लेखन की अद्भुत कला, उनकी शोहरत विदेश के मंचों तक है। कोरोना महामारी के दौर में जब अधिकतर नौकरियां घरों तक सिमट गई और हर काम ने ऑनलाइन का रास्ता तलाशा तो कविता के मंच भी इससे अछूते नहीं रहे। गूगल मीट और जूम पर कवि सम्मेलन आयोजित होने लगे और ऑनलाइन शामें सजने लगीं। लेकिन, आम आदमी के कवि स्माइलमैन सर्वेश अस्थाना को ये ऑनलाइन वाली बात कुछ जची नहीं। स्माइल मैन का हर कवि के लिए ये संदेश है कि कविता को जिंदा रखना है तो उसको ऑनलाइन परोसने से बचो।
ऐसा क्यों?
इस सवाल के जवाब में स्माइल मैन सर्वेश अस्थाना का कहना है कि हालात सुधरने पर जब एक बार फिर से ऑफ़लाइन का समय आएगा तो ऑनलाइन वाले पूछे नहीं जाएंगे। हर चेहरे पर मुस्कान बिखेरने का ध्येय रखने वाले व्यंग्य कवि महामारी की विभीषिका को मानते हैं। मगर उनका ये भी कहना है कि कविता, व्यंग्य या किसी भी साहित्य से जुड़ा व्यक्ति किसी न किसी दूसरे प्रोफेशन से भी जुड़ा रहा है। कोरोना ने उसकी रोज़ी रोटी पर असर जरूर डाला है मगर बिल्कुल बेरोजगार होने से बचा लिया है। ऐसे लोग जो सिर्फ साहित्य से जुड़े थे कोराेना से बेअसर रहे हैं। ऐसा सर्वेश अस्थाना इसलिए भी मानते हैं क्योंकि लेखकों के कॉलम उसी रूटीन में छापे गए हैं। महामारी में अखबार और पत्रिकाएं बंद नही हुईं।
कोरोना काल में ऑनलाइन सजने वाले मंच से सर्वेश अस्थाना को शिकायत है। उनका मानना है कि प्रस्तुति का ये माध्यम रचनाकार का अवमूल्यन करता है। इस पूरे अरसे में उन्होंने गिनती के ऑनलाइन कार्यक्रम में हिस्सा लिया जिसमे डा. राहत इंदौरी और कुंवर बेचैन को श्रद्धांजलि देने के अलावा दो करीबी लोगों की फरमाइश पर होने वाले कार्यक्रम थे। उनके मुताबिक़ ऑनलाइन में अपनी बात कहने का वह मजा ही नहीं जो मंच के जरिए ऑफलाइन कहने में है। उनके अनुसार ऑनलाइन माध्यम की एक समस्या तो श्रोताओं की कम संख्या होना है और दूसरी सबसे बड़ी कमी ये है कि ऑनलाइन होने पर जज़्बात और अहसास के वो तंतु नही जुड़ पाते जो सामने मौजूद दर्शक से जुड़ते हैं।
अपने प्रोफेशन से पूरी तरह संतुष्ट सर्वेश अस्थाना के लिए सबसे बड़ी खुशकिस्मती ये है कि उनका प्रोफेशन उनके मूड से जुड़ा है और वह इस मूड को जीते हैं। व्यंग्य, कविता के अलावा साहित्यगंधा का प्रकाशन, ये तीनों ही काम उनका ऐसा प्रोफेशन हैं जिससे उन्हें लगाव है। ये सभी महामारी से बेअसर भी रहे हैं।
गंगा-जमुनी तहजीब को आगे बढ़ा रहे स्माइल मैन
10 सितम्बर 1965 को हरदोई (उ.प्र.) में जन्मे सर्वेश अस्थाना को हिंदी के साथ उर्दू पर भी मज़बूत पकड़ है और यही खूबी गंगा जमुनी तहज़ीब की विरासत को आगे ले जाने में मददगार है। इस समय सर्वेश अस्थाना इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रन्थ क़ुरआन का मुक्तकों में और गीता का अवधी अनुवाद कर रहे हैं। गीता के अनुवाद का पहला खंड जल्द ही प्रकाशित होने वाला है। भारत के लगभग सभी प्रांतों में काव्य मंच का हिस्सा रह चुके सर्वेश अस्थाना ने अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, इंडोनेशिया और खाड़ी के कई देशों में काव्य पाठ किया है। वर्तमान में भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद भारत सरकार के सलाहकार के सलाहकार होने के साथ कई कल्याणकारी योजनाओं से भी जुड़े हुए हैं।
सर्वेश अस्थाना का रचना संसार-
बालकनी वाली (संस्मरण संग्रह )
भोर विभोर (मुक्तक संग्रह)
इनको जानो इन्हे मनाओ (बालगीत संग्रह)
खौलता मकरंद (गीत संग्रह)
तन्हाईयां आबाद हैं (ग़जल संग्रह)
वजीर बादशाह (गद्य व्यंग्य कविता संग्रह)
शमशान घाट (व्यंग्य संग्रह)
बाल साहित्य-
इनको जानो इन्हे मनाओ (बाल गीत संग्रह)
इनको शीश नवाओ (बाल गीत संग्रह)
आकाशवाणी और दूरदर्शन के लिए लेखन।
सम्मान और पुरस्कारों की फेहरिस्त –
उत्तर प्रदेश का सर्वोच्च सम्मान “यश भारती “
व्यंग्य का सर्वोच्च सम्मान “काका हाथरसी पुरस्कार “
न्यूयॉर्क, अमेरिका मे सर्वाधिक लोकप्रिय हास्यकवि का सम्मान
वाशिंगटन, अमेरिका मे भारतीय उच्चायुक्त द्वारा “व्यंग्य शिरोमणि”
सर्वेश अस्थाना के दिल में बसता है ऐसा हिंदुस्तान-
मेरे घर के भीतर अब लोबान महकता है,
ऐसा लगता है मुझमे इंसान महकता है।
मंदिर – मस्जिद मुल्ला – पंडे दूर छोड़ आया,
दिल के दैर ओ हरम में अब ईमान महकता है।
जिसकी ठंडी हवाएं उनको राहत देती हैं,
दिल के गोशे गोशे हिंदुस्तान महकता है।